7/08/2017

छिंदक नागवंश (बस्तर) - Chhindak Naaga Vansh


संस्थापक - नृपति भूषण।
शासन काल - 10 वीं. से 1313 ई. 
राजधानी - भोगवतीपुरी।  

इतिहास
छिंदक नागवंश की स्थापना नृपति भूषण ने की थी। छिंदक नागवंश का शासन क्षेत्र बस्तर था।  बस्तर के प्राचीन नाम के सम्बन्ध में अलग-अलग मत हैं। कई "चक्रकूट" तो कई उसेे "भ्रमरकूट" कहते हैं। नागवंशी राजा इसी "चक्रकूट" या "भ्रमरकूट" में राज्य करते थे।

नृपति भूषण : इस वंश के प्रथम शासक माने जाते है। इसकी जानकारी एर्राकोट अभिलेख से मिलता है।

धारावर्ष : ये नृपति भूषण के उत्तराधिकारी हुए, जिसकी जानकारी जगतदेव भूषण के बारसूर अभिलेख से मिलती है। इनके समय बारसूर राजधानी थी। इनके सामन्त चन्द्रादित्य ( chandraditya ) ने बारसूर में शिव मंदिर बनवाया था जिसे चंद्रादितेश्वर ( चन्द्रादित्य मंदिर ) कहते है। इसके अलावा बारसूर में तालाब का उत्खनन कराया।

मधुरांतकदेव : इसने चोल शासन के सहयोग से शासन किया। इसका उल्लेख लेखराजपुर (जगदलपुर) ताम्रपत्र में मिलता है। इसके व धारावर्ष के पुत्र सोमेश्वर के मध्य युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई।

सोमेश्वरदेव इस वंश के सबसे जाने-माने शासक थे। उनका शासन काल 1069 ई. से 1079 ई. तक था। कलचुरी शासक जाज्वल्यदेव प्रथम से सोमेश्वरदेव का युद्ध हुआ था जिसमे सोमेश्वरदेव परास्त हुए थे।  इस युद्ध के बाद जाज्वल्य देव ने मंत्रियों और रानियों समेत सभी को बंदी बना लिया, सोमेश्वर देव की माता गुंडमहादेवी के कहने पर जाजल्यदेव प्रथम ने सोमेश्वर देव को मुक्त कर दिया।

इस युद्ध के लिए जाजल्यदेव प्रथम ने चक्रकोट में नागों की राजधानी कुरुषपाल को घेरा था। राजधानी को घेर कर यह कार्यवाही की गई थी।

सोमेश्वर देव के मृत्यु उपरांत उसकी माता गुंडमहादेवी ने अपने पौत्र कन्हरदेव के शासनकाल में नारायणपाल मंदिर का निर्माण कराया था, जो भगवान विष्णु को समर्पित है।

सोमेश्वरदेव की मृत्यु के बाद कन्दरदेव राजा बने उसके बाद जयसिंह देव का शासन काल आरम्भ हुआ। जयसिंह देव के बाद नरसिंह देव और उसके बाद कन्दर देव।

छिंदक नागवंश इस वंश के अंतिम शासक का नाम था हरिश्चन्द्र देव। हरिश्चन्द्र को वारंगल के चालुक्य अन्नभेदव (जो काकतीय वंश के थे) ने हराया। हरिश्चंद्र को इस वंश का अंतिम शासक थे।

नरबलि:
छिंदक नागवंश के ही मधुरांतक देव के ताम्रपत्र भिलेख से नरबलि प्रथा का लिखित साक्ष्य मिला है। 

निर्माण :
चन्द्रादितेश्वर मंदिर दन्तेवाड़ा